Friday, January 12, 2018

My Achievements Featured on PTC NEWS


My achievements featured on Network 18 website

बीमारी की वजह से स्कूल ने नहीं दिया था एडमिशन, आज लिम्का बुक में दर्ज है नाम

बीमारी की वजह से स्कूल ने नहीं दिया था एडमिशन, आज लिम्का बुक में दर्ज है नाम
पेरेंट्स को पता चला कि उनका बच्चा सेरिब्रल पाल्सी का शिकार है

जिस बीमारी में अपने हाथों से ब्रश करने में घंटाभर लग जाता है, शर्ट के बटन बंद करना एवरेस्ट फतह करने जितना मुश्किल काम है, उसी बीमारी के साथ करनाल के डॉ रितेश सिन्हा ने जिंदगी जीने की मिसाल कायम की. शारीरिक विकलांगता को देखकर कई स्कूलों ने उन्हें एडमिशन देने तक से इनकार कर दिया था, अब रितेश काम के बाद वहीं के हजारों बच्चों को कंप्यूटर की ट्रेनिंग देते हैं.

रितेश जन्म के बाद आम बच्चों से थोड़े अलग तो लगते थे लेकिन 11 महीने के होने के बाद माता-पिता को पता चला कि उनका बच्चा सेरिब्रल पाल्सी बीमारी का शिकार है. इस बीमारी में मस्तिष्क प्रभावित हो जाता है और बोलने, चलने-फिरने जैसे छोटे-छोटे काम भी मुश्किल हो जाते हैं. रितेश अपवाद नहीं थे. बचपन में वे अपने काम भी खुद से नहीं कर पाते थे.

स्कूल वालों ने उन्हें अपने स्कूल में एडमिशन देने से इन्कार कर दिया क्योंकि मैनेजमेंट को भरोसा नहीं था कि वे दूसरे बच्चों के साथ पढ़ाई कर सकेंगे. उनकी मां डॉ पुष्पलता सिन्हा ने hind.news18.com से उनके बचपन का संघर्ष साझा किया.


सब हम रितेश को पहली बार एक स्कूल में ले गए तो वहां सुना कि 'ऐसा' बच्चा गिर सकता है, उसे चोट लग सकती है और वो आम बच्चों के साथ पढ़ाई नहीं कर सकता. हम लगातार एक से दूसरे स्कूल में उसे ले जाते रहे और लगातार अलग-अलग आवाजों और चेहरों से यही शब्द सुनते रहे. आखिरकार एक स्कूल ने इस शर्त पर उसे एडमिशन दिया कि उसी स्कूल में रितेश की बहन को भी पढ़ाई करनी होगी. बहन तैयार हो गई और इस तरह से पढ़ाई की शुरुआत हुई.

स्कूल से लौटते हुए वो उदास रहता. बच्चे उसे चिढ़ाते क्योंकि वो ठीक से बोल नहीं पाता था. चल-फिर नहीं पाता था. छोटे से छोटा काम खुद नहीं हो पाता था. ऐसे माहौल में पढ़ाई करना उसके लिए काफी मुश्किल था. वहां से हमने उसे दूसरे स्कूल में डाला. वहां भी एडमिशन की एक शर्त थी कि उसे पहले कुछ दिनों तक जांचा-परखा जाएगा कि वो दूसरे बच्चों के साथ उनकी तरह पढ़ पाता था. कुछ दिनों बाद वहां से 'हां' के लिए फोन आ गया.

शुरुआत में परीक्षाओं का वक्त रितेश के लिए खासा मुश्किल रहा. वो एक पन्ने पर कुछ ही शब्द लिख पाता था. परीक्षा देते हुए पूरा जवाब देने के लिए कॉपियों पर कॉपियां भरनी होतीं ताकि पूरा लिख सके.

तीन घंटे की बजाए छह घंटे का वक्त लेता. बोर्ड परीक्षाओं के वक्त अतिरिक्त समय नहीं मिल सकता, न ही रितेश की भाषा सबकी समझ में आती. रितेश सवालों के जवाब बोले और उसकी टीचर उन्हें लिखे, इस बात की इजाज़त पाने के लिए हमने कई महीने तक बोर्ड सेंटर के चक्कर काटे. इसी तरह से उसके स्कूल के कुछ साल बीते. घर लौटकर रितेश दिनभर लिखने की कोशिश करता.

पेन-पेंसिल पर उसकी पकड़ ठीक से नहीं बन पाती थी लेकिन बार-बार कोशिश से आखिरकार वो 'लगभग' दूसरे बच्चों की तरह लिखने लगा.



अक्सर मांएं सपने देखती हैं कि उनका बच्चा बड़ा होकर फलां काम करेगा. मैं सपने देखती कि वक्त के साथ वो अपने कई काम खुद कर पाएगा. वो पल मेरे लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं था, जब वो अपनी डिजाइन की हुई ट्राइसिकल पर बैठकर पहली बार चला. कोर्ट से ही लड़ाई लड़कर और जीतकर वो करनाल की जिला अदालत में कंप्यूटर डेटा ऑपरेटर की नौकरी कर रहा है.

मैं हर दिन पुलक से भर उठती हूं, जब वो खुद दफ्तर जाता है, दफ्तर के साथियों से हंसता-बोलता है. दुनिया के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में उसका नाम आना बड़ी बात रही, लेकिन एक मां के लिए उसके बेटे की छोटी से छोटी कोशिश भी किसी उपलब्धि से कम नहीं. फिर चाहे वो खुद से बाहर आना-जाना हो या फिर अजनबियों से बात की कोशिश.

हाल ही में उसने रितेश मुद्रा नाम से एक योग का एक तरीका ईजाद किया है. यह खास सेरिब्रल पाल्सी से ग्रस्त लोगों के लिए है ताकि शरीर की जकड़न कम हो सके.